Thursday 31 May 2012

मुझे गरीब ना कह्ना ............ मै गरीब नही .......... पर सभी सुविधा चाहीये

देश और राज्य सरकारे  रोज नई योजनाओ के माधय्म से गरीबो का जीवन स्तर उठाने के लिये  अपना अथक प्रयास कर रही है । और उस योजनाओ से लाभ लेते लोग भी दीखाई देते है । पर जो लोग लाभ उठा रहे है उनमे से अधीकतर लोग न तो  गरीब दीखाई देते है और न ही वो गरीब है । मुझे तो एसा लग राहा है की इन योजनाओ के माध्याम  से सरकार अपने वोट खरीद कर राजनीतीक  स्वार्थ सीध्धी कर रही है ।                                                                           मुझे आज घर से काहा गया की घर मे कुछ काम है एक मजदुर चाहीये , पर सारा दीन डुड्ने के बाद एक एसे आदमी से मुलाकात हुई जो मनरेगा के तह्त 100 दीन का रोज़गार गारान्टी पुरा कर चुका था । मैने उसे अपने घर पर मजदुर की आवश्यकता बताई तो उस वयक्ती ने  बताया की मै सीर्फ 4 घंटे काम करुगा और 200 रुपये लुगा । मैने उस्से काहा की ये तो आठ घंटे के लीये भी जादा है । वो बोला साहाब आप को पता नही हम गरीब है, और ह्मारा कार्ड भी है । सरकार हमको 2 घंटे काम करने पर 140 रुपये देती है । और उन दो घंटे मे हम काम करें या ना करें कोई हमको बोलने टोकने की हीम्म्त नही कर पाता कुओ की ह्मारे पास गरीबी रेखा के नीचे वाला कार्ड है । और 5000 ह्जार तो हमको वो कार्ड बनवाने के लीये खर्च करने पडे है । इस लीये साहाब हम 4 घ्ंटे का 200 रुपये से कम नही लुगा ।                                   मुझे ये एह्सास होने लगा की इस गरीब से काम करवाने की हीम्मत मुझ गरीब मे तो नही । और मुझे ये भी समझते देर नही लगी की वीकास दर क्यो गीर रही है । और ये भी की उत्पादन क्यो और कैसे गीर राहा है । यानी जो गरीब है वो योजनाओ का लाभ नही ले पा रहे है । और जो गरीब नही है वो सारी योजनाओ का आनन्द तो ले ही रहै है । बलकी गरीबो के काम के अवसरो को भी हथीया लीया है ................................... ईसी प्रकार गरीबो के हक को चालाक और धुर्त लोग खा तो रहै है साथ ही अपने आप को गरीब कहलाने मे भी शर्म मह्सुस होती है । कई गरीब तो एसे भी है जो कीसी दुसरे नाम से भी गरीब बने हुए है एसा करने के लीये गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले गरीब परीवार के कई कार्डो मे से कुछ को बाकायदा खरीद लीया है ये भी एक व्यपार है । और जो व्यपार कर राहा हो वो गरीब कैसे हो सकता है ।

Wednesday 23 May 2012

ये पब्लीक् है सब जांति है ?

ये पब्लीक है सब जानती है , अजी अन्दर क्या है बाहार क्या है , ये सब पह्चानती है । क्या वास्तव मे एसा है , या क्या वास्तव मे पब्लीक एसा मानती है ? ये लाइने बेशक कीसी फील्मी गीत की हो  सक्ती है पर क्या आज देश के जो हालात है । उसमे ये कह्ना बेमानी नही होगा ?  की देश की जनता सब जानती है । अगर पब्लीक सब जांती होती की कोन सा नेता कैसा है , भ्रष्ट है , चोर है , कातील है , बलात कारी है , या पापी, और लुटेरा है तो क्या पब्लीक इन सब को चुन कर विधान सभाओ, और लोक सभा, राज्य सभा मे भेजने की गलती थोडे करती , और अगर ये काहा जाये की ये सब जांते हुए भी जनता ने इन सब को चुन कर भेजा है तो मै यही कहुगा की जनता न केवल  प्रजातंत्र के प्रती उदासीन है बल्की देश के कानुन से जादा लोग इस टाईप के नेताओ पर जादा वीश्वास करते है जो जुल्म से जुडे है लेकीन आम आदमी इनकी बात मानता है । चाहे वो उस्के डर से ही एसा करते हो । याहां ये बात साबीत होती है की भय बिन प्रीत न होय गोपाला । 100 बात की एक बात देश का आम नागरीक चाहे वो डर से हो या जिवन यापन के चक्कर मे अनुशासन हीन हो चला है । इन सब को कानुन के भय से ही ठीक कीया जा सक्ता है ? जो राहा ही नही है । इन्ही सब के कारण आम आदमी कानुन के पास जाने के बजाये एसे भ्रष्ट  लोगो के पास जा कर अप्नी त्तकालीक पुर्ती और स्वार्थ सीद्धी कर लेते है । मै इन्ही माय्नो मे फील्मी गीत की वो पग्तीया गाता हु जिस्मे काहा गया है की ये पब्लीक है सब जांती है ............. की काहा उस्का लाभ है । इस बात को समझे की भ्रषट्राचार , लुट , चोरी, बलात्कार , हत्या जैसे जुर्म का समाधान अपने वोट से ही करना और हम्को मतदान आवश्यक कानुन और राजनीतीक पार्टीयो के घोषना पत्रो पर उपभोक्ता कानुन मे लाना होगा तभी सही मायने मे आम आदमी जागे गा और गाये गा की ये जो पब्लीक है सब जांती है ................. ?

Saturday 19 May 2012

और दुसरो न कोई .............

जब जब देश  को कुर्बानी  देने की बात आती है तो ह्मारे नेताओ दवारा  अप्ने अलावा एसे लोगो की तारीफ शुरु कर देते है जीनका कुर्बानीयो से कीसी न कीसी तराहा का सरोकार राहा है । और वो सीर्फ इस लीये ताकी कुर्बानी देने के लीये जनता कही उनका चुनाव ना कर ले । जब्की ये बात सही है की देश की सीमा पर और देश के अन्दर देश के दुशमनो से लड रहे सीपाहीयो द्वारा अप्नी जान कुर्बानी के प्रस्तुत कर चुकने के वक्त भी नेता केवल अप्नी कुर्सी कायम रख्ने का दांव पेच खेल राहा होता है ।याहा यह गॉर करने वाली बात है की देश का सिपाही चाहे वो देश के अन्दुरुनी हीस्से मे हो चाहे वो सीमाऔ पर हो , चाहे वो अपने परीवार के लीए अभाव को दुर न कर पाराहा हो पर देश और देश वासीयो की रक्षा  मे अपने प्राणो को खर्च  करने मे कभी देर नही करता और कंजुसी भी नही । हम सब को देश के सीपाहीयो के इस  बलीदानी  जज्बो को न केवल सलाम करना चाहीये बल्की समाज मे उन्को समय समय पर सम्मान भी देते रह्ना होगा यही एक सीपाही की पुजीं हो सक्ती है जीस्से प्रभावीत हो कर सीपाही कह्ने मे हीच्के गा नही की देश के सीवाये मेरा दुसरो न कोइ  ।  

Thursday 17 May 2012

सरकार की नीयत और नीती दोनो गलत ................

छतिसगड की आबकारी नीती और वर्तमान मे सरकार दवारा चलाये जा रहे आशींकं नशाबन्दी कार्यक्रम मे वीरोधाभास है । 2011-2012 , 2012-2013 के वीतीय वर्ष मे जाहा सरकार  आशीकं नशा बन्दी की बात कर कई शराब दुकानो को बन्द कर आम जनता की वाह्वाही लुट रही ठीक वही शेष बची दुकानो मे वर्ष 20011-2012 और 2012-2013 बेची जाने वाली वो मात्रा भी जोड दी जो इन वितिय वर्षो मे बन्द की जाने वाली दुकानो पर विक्रय की जानी  थी । अर्थात दुकानो के बन्द होने से वो मात्रा जो घट जानी चाहीये थी। उल्टा वो मात्रा और विक्रय मात्रा जोड कर 25 से 30 %  और जोड कर कुल विक्रय होने वाली मात्रा त्यार की गई जब्की इस मात्रा को बेचे जाने के लीये निर्धारीत वीक्रय छेत्र को घटा दीया गया था । इस प्रकार शासन दवारा अप्ना राजस्व न केवल पुरा कीया गया बल्की इन वितीय वर्षो मे दुकानो के घट जाने की वजह से जो राजस्व घट जाना चाहीये था ।     { जैसे सरकार प्रचार कर रही है }  और इस प्रकार आशीकं नशा बन्दी केवल दीखावे के लीये ही है जबकी राजस्व पुरा कीया जा राहा है । केवल इस व्यवसाय से जुडे लोगों को परेशान कर शासन आम लोगों के नागरीक  समांता  के अधीकारो का खुला उलघ्न कर रही है क्यो की सरकार कोन होती है ये तय करने वाली  की फ्ला गांव का आदमी शराब पीये और इस गांव का आदमी शराब नही पीये गा इस लीये इस गांव की शराब दुकान बन्द कर दो .................. कानुन भी सरकार एसा नही कर सक्ती और वास्तव मे सरकार नशा बन्दी चाहाती है तो पुरे प्रदेश मे सारी जगहो की शराब दुकानो को एक साथ बन्द कर राजस्व का लालच छोड दे सरकार  या फीर सालो से इस व्यवसाय को कर रहै लोगों को अप्ना व्यवसाय को बीना भय या अनावश्यक राजनीतीक लाभ की आशा मे  सुचारु रखने दे । 

Friday 11 May 2012

मेरे घर ना आना भगत ................................

आज मेरा ख्याल   अचानक समाचार पत्रो और समाचार चैंनलो  पर जा कर ठहर गया और फीर मेरे अंदर एक मंथन रुपी दवध्ध चलने लगा । आज़ देश मे हर चोथा आदमी दुसरे को चोर, भ्रष्टाचारी, अत्याचारी और लुटेरा साबीत करने मे लगा हुआ है  । और एसा करने मे वो अप्ना दाईत्व, जिम्मेदारी, और वो सब भुला बैठ्ता है जो एक मर्यादा के रुप मे हमे कानुन से बान्धती है । चोरी, भ्रष्टाचार, अत्याचार और लुट के वीरोध मे जित्ने लोग दुसरे लोगो को जगाने मे लगे है वो खुद इस सब के खीलाफ क्मरकस के लग जाये तो ये सब अप्ने आप ही समाप्त हो सक्ता है । जब तक दुसरो को जगाने की बात है तो लोग बड चड के हीस्सा लेते है पर जैसे ही खुद की बारी खुद के घर से क्रांती शुरु कर्ने की आती है तो लोग बगले झाकते नजर आते है । अर्थात कीसी क्रांती मे कुर्बानी देने हेतु लोग यही इरादा रखते है की कुर्बानी देने वाला भगत, सुखदेव, राजगुरु उनके आगन मे पैदा ना हो पडोसी के घर ही कुर्बानी की जीम्मेदारी हो ?

Thursday 10 May 2012

सरकार का आत्मसमर्पण तो आम आदमी की क्या बीसात ...............................

छतीसगड के नये जीले सुकमा मे पीछ्ले दीनो वाहा के क्लेक्टर एलेक्स पाल का नक्सल वादीयो दवारा अप्रीहीत कीये जाने औए रीहा होने के बीच मे जो 13 दीनो का नाट्कीय घटनाक्र्म सामने आया वह निश्चीत रुप से चोकाने वाला और अध्यन करने की स्थीती बनाता है । यह बात समझनी होगी की जीस सरकार के पास सारे साधन, लाव -लशकर है और जींन्के भ्ररोसे आम आदमी की सुरक्षा होती है वो खुद नक्सल वाद के सामने घुटने टेकी नजर  आती है । तो फीर एसे आम आदमी, व्यपारी, कर्मचारी की क्या बीसात जो नीहथ्थे ,कमजोर , है और अप्ना जिवन  यापन करने के लीये नक्सल वाद की अवैध मागो को मानने बाध्य होते है

Sunday 6 May 2012

                                                          मेरे से ह्मारे तक के चार कदम ...                                                                                                                                                                       पीछ्ले कोई 10 सालो मे मैने इक खास चीज महसुस की है । की देश का हर छोटा - बडा नेता अप्ने क्षेत्र के लोगो की बात करने मे पीछे नही है और लोगो के सामने अप्ने आप को उनका मसीहा प्रद्रशीत करने मे भी नही चुकता है चाहे वो मुद्दा रसट्रीय्ता से ही क्यो ना जुडा हो अगर उस मुद्दे मे देश का नुकसान जुडा हो और उस  व्यक्ती का लाभ जो उस छेत्र का है । कह्ने का भाव ये है की देश की कोइ नही सोच राहा सब मेरी, मेरा, और छेत्र्वाद की भावना से काम कर रहे है लेकीन छेत्रवाद की भावना देश को देश बनने से रोकती है और जब तक रास्ट्रीय्ता की भावना को बडावा नही मीले गा हमको इस संघीय डाचे को देश बनाने मे मदद नही मील सक्ती। इस लीये हम सब को छेत्रवाद से उपर उठ कर राष्ट्र वाद की बात करनी होगी तभी मेरे, मेरा से हम अप्ना, ह्मारे तक का सफर तय कर पायेगे ।

बेनकाब

हम जब म, प्र के हीस्से के छतिसगड मे थे तो हम को कई सुवीधाए नही मील पाती थी । जैसे  बीजली , सडके, स्वास्थ सेवाये, और न्याय के लीये  लम्बे समय तक इंतजार करना पड्ता था । पर छतिसगड निर्माण के साथ ही हमको वीकास की जैसी गगोत्री मील गई हो । पर साथ ही हमको नक्सल वाद जैसा नासुर मीला जीस्के समाधान के लीये कई सीपाही , अधीकारी , कर्मचारी , व्यपारी, आम नागरिक अपनी कुर्बानी भी देते रहै है , पर मुझे न जाने क्यो एसा लगता है की ये समस्या कही न कही केन्द्र से आने वाले अनाप शनाप पैसे से सम्बन्धीत  भी है । क्यो की समस्या नही होगी तो केन्द्र से पैसा नही आये गा और अगर समस्या समाप्त हो गई तो पैसा आना बन्द हो जायेगा । इन सब बातो के बीच  व्यवस्था से नाराज युवा कुछ वीद्रोही जैसा व्यवाहार कर रहे है और अवसरवादी नेता, अधीकारी और असमाजीक तत्वो ने एसे युवाओ को नक्साल वाद जैसा दीखा कर केन्द्र से आने वाली नक्स्ल उनमुल्न की राशी का दोहन करते रहना चाह्ते है । जब की व्यवस्था से नाराज युवाओ को केन्द्र से आने वाली नक्सल उनमुल्न की राशी मे से केवल  10 % की राशी उन्की मर्जी से उन्के छेत्रो मे वीकास हेतु  खर्च करने  के लीये उपलब्ध करा दी जाये तो न केवल नक्सलवाद पर काबु पाया जा सक्ता है बल्की करोडो की राशी भ्रश्ट नेता , अधीकारी, और असमाजीक तत्वो को बे नकाब भी कीया जा सक्ता है ।