Monday 25 June 2012

मेरा शहर रंगीला है....तेरे ख़्वाब आसमानी हैं....तेरी सोच आला है...पर मेरी चाहत नारंगी है.......


आज घर से निकलते ही दो कदम चलते ही नजर आया माननीय मुख्यमंत्री का निवास। वहां की गतिविधियां देख कर अनायास ही मेरी गाड़ी वहां रुक गई और मै वहां की सरगर्मी का जायजा लेने लगा।  पता लगा की कल हमारे मुख्यमंत्री जी शहर को फिर एक सौगात देने हेतु पधार रहे हैं। जब-जब हमारे मुख्यमंत्री जी कुछ देने आते हैं तो उनके द्वारा दी गई अनेक सौगातों की याद एक चलचित्र की भांति आखों के सामने घूमने लग जाती है। आज भी यही स्थिति मेरी आखों के सामने बन रही है। तो आओ, हम विचारें कि हमारे विधायक और प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा हमारे जिले के मुखिया ने अपने शहर पर क्या क्या कृपा की है । 
सबसे पहले हम बात करें गौरवपथ की जो दिखाई तो देता है की वो पूर्ण हो चुका है पर कही न कही पूर्ण होने की प्यास और भूख उसमे दिखाई देती है। ये अलग बात है कि उसको पूर्ण कराने और करने मे प्रशासन को एड़ी चोटी का जोर तो बकायदा यहां से ही ठेकेदारी की शुरूवात की है। 
 वहां से निकल जब हम शहर के फोरलेन पर पहुंचे तो मुझे लगा कि जो नेता छोटे छोटे निर्माण का श्रेय लेने के लिये आपस में होड़ लगा लेते हैं वो नेता इस फोरलेन के निर्माण का श्रेय लेने मे डर क्यो रहे हैं। तब यह एहसास हुआ कि ये निर्माण श्रेय लेने लायक नही है। जो व्यक्ति या नेता इस निर्माण का श्रेय  लेने की कोशिश करेगा वो यहां की जनता की आखों की किरकिरी बन जायेगा। यही वजह है कि न तो इस इस बेतुके ए बेढंगे, बिना कारण के गलत बने फ्लाई का उद्घाटन हुआ और ना तो इसके निर्माण का राजनीतिक लाभ  किसी  नेता ने लेने की कोशिश की । यहां ये बात  गौर करने वाली है कि इस शहर को इस फोरलेन  ने शहर की परम्परा, मर्यादा, व्यापार और परिवारों को भी प्रभावित किया है । यही वजह है कि शहर का कोई भी नागरिक इस फ्लाईओवर को जायज नही ठहरा सकता। 

 फ्लाईओवर से नीचे उतर कर हमारा ध्यान अब बूढ़ासागर पर आ गया। ये वही बूढ़ा सागर है जिसकी सुन्दरता को ले कर एक महती योजना स्थानीय प्रशासन ने जन सहयोग से चलाई  और वहां पर मशीनों के माध्यम से काम शुरु कर रोज शहर के समाजसेवियों और स्थानीय अधिकारियों  ने मिल कर एस महती योजना का ढिंडोरा पीटा था। निश्चित ही यह योजना लोगों के लिये एक मिसाल होती  बशर्ते ये अब तक पूरी हो चुकी होती । 

यहां पर नई गंज मंडी की चर्चा न करना बेमानी होगा, क्योंकि माननीय मुख्यमंत्री जी ने कई  सौगाते वहां भी हमको दी है। वो सब्जी बाजार जो कभी आबाद नही हुआ, वो माल जो कभी भी किसानो को लाभ नही दे पाया और अब तो सुनाई आ रहा है कि उस माल को एक शहर के व्यापारी को लीज पर दे दिया गया है और ये भी सुनने को मिल रहा है कि इस व्यापारी को देने के लिये उसके निर्वर्तन प्रक्रिया  मे से कई शर्ते शीथिल कर अनुचित लाभ से नवाजा गया है । 
 पुराना गंज मंडी चौक में बन रहा शापिंग काम्पलेक्स, रेल्वे  स्टेशन के पास बन रहा शापिंग काम्पलेक्स  जहां पूरा होने की बाट जोह रहा है वहीं ट्रांसपोर्ट नगर अपनी दास्तां पर आसूं बहा रहा है  क्यों नही ये सारी चीजो को पूरा कर जनता को व्यापार हेतु उपलब्ध कराये तो माननीय मुख्यमंत्री की सौगातो को प्रशंसा मिल सके।

     यहां हम नगर में बनी चौपाटी पर बात कर लेना लाजिमी मानते हैं । चौपाटी को बनाते वक्त ये नहीं सोचा गया कि यहां की दीवारों पर लगी जालियां नगर के चोरों का पेट भरेगी और वहां पर नगर के सारे आशिक अपने दिल की बात अपनी महबूबा से कहने के लिये इक_ा होंगे और बच्चो के लिये चलाई गई टायट्रेन में बैठ कर कोई प्यार के गीत गायेंगे पर अफसोस यहां पर न तो आशिकों की मुराद पूरी हो सकती है और न ही बच्चों की छुक-छुक मे चढऩे की ख्वाहिश क्योंकि कई महीनो से टायट्रेन बंद पड़ी है। 

चौपाटी पर खड़े-खड़े नजर पड़ी क्रेडा के उर्जा पार्क पर जहां माननीय मुख्यमंत्री महोदय ने हमको एक संगीतमय फौव्वारा सौगात में दिया था जो संगीत की धुनों पर पानी की बौछारें बिखेरता था। बड़े अफसोस की बात है कि पिछले कई दिनों से ये नजारा भी नगरवासी देख नही पा रहे हैं। 
नगर में एक स्थान पर राजनादगांव की तीन विभूतियों के नाम से त्रिवेणी परिसर बनाया गया जहां पर प. बलदेव प्रसाद मिश्र,गजानन माधव मुक्तिबोध, डा पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी की प्रतिमाएं लगा कर उस स्थान को सजाने का काम तत्कालीन जिलाधीश गणेश शंकर मिश्रा ने किया था पर ये स्थान भी आज वीरान और उपेक्षित दिखाई देता है जबकि यहां से लोगों की भावनाये जुडी हुई हैं। 
इन्हीं सब पर विचार करते-करते हम भदौरिया चौक पर आ गये और बातों-बातों में हमें तिरीथराम मंडावी मिला, जिसके आग्रह पर मै बसंतपुर,नंदई, लखोली, मठपारा होता हुआ चिखली पहुंचा जहा पर मुझे ये सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि जब बरसात के पहले इन सड़कों  को अगर बनाना नहीं था तो क्यों लोगों के घरो, दुकानों, और छोटे-छोटे आशियानों को विकास के नाम पर तोड़ा गया।
  मै अभी शहर की सड़कों पर बात कर ही रहा था कि मेरे पीछे से आवाज आई, भाई साहब अभी तो आप ने बायपास पर कोई बात नही की है?क्या आप को बाईपास का औचित्य नजर आता है? मैने ये बात जब सुनी तो मेरे अन्तरमन ने मेरे से एक सवाल किया कि  बेढंगा बायपास को उस मुहावरे के साथ मै पूर्ण करुंगा जीसमे कहा गया कि जख्मों पे नमक छिड़कना...फ्लाईओवर के बाद बायपास बिलकुल वैसा ही है।   

जिला अस्पताल की सुरताल अब जा कर ठीक हुई है। स्टडियम कमेटी का हाल किसी से छुपा नही है... हमारी  पुलिस तो माशाअल्ला उसको कुछ कहने में डर सा लगता है।
और क्या लिखूं...राजनीति... नही भाई...नहीं ...मेरी तौबा!
बरबाद गुलिस्तां करने में एक ही उल्लू काफी है...

Monday 4 June 2012

हा बहस होनी चाहीये पर पीछ्ली बहस का क्या ?

 होनी चाहीये बहस जरुर हा जरुर होनी चाहीये बहस एक कीसान पर , कीसान की मौत पर , सीमा पर सीपाही की  हालत पर , आतंकवाद से लडते मरते सीपाही पर , हा संसद मे  लड्ते नेताओ  की सोच पर , दल और गुटो मे बटे नेताओ  पर , कीसी क्रीकेट खीलाडी के पाव की मोच पर , रीश्वत लेते अधीकारी पर , काम से जी चुराते कर्मचारी पर , व्यपार मे मरते व्यपारी पर बहस होनी ही चाहीये ।लींग आनुपात मे बडती खाई पर , कोख मे मरती माई पर   बलातकारी भाई पर , राजनीती की डाई पर बहस होनी ही चाहीये । पाकीस्तान और अपने रीश्ते पर , दोनो देशो के नक्शे पर ,चीन की गुंडागर्दी पर , सेना की वर्दी पर होनी ही चाहीये बहस। मा की ममता पर , समाजो की क्षमता पर , ममता के गुस्से पर  बहस होनी ही चाहीये । प्यासे मरते खेतो पर , हस्पतालो मे मरते बच्चो पर , बड्ता वजन बस्तो पर  बहस का वीषय ही है । गीरते उत्पादन पर रुपये की हालत पर , साधु संतो की  राजनीती पर , अन्ना ह्जारे , और बाबा की हालत पर उनके आन्दोलन पर बहस जरुरी है । सी.बी. आई की स्वत्ंत्रता पर ,देश की अख्णता पर , जाती वादी जनसख्या की गणना पर बहस आवश्यक  है । जरुरी है हर बहस बहुत जरुरी है भाई पर हो आगे कोई नई  बहस उस्के पहले पीछ्ली बहस क हीसाब होना चाहीये ............. नही है कोई हीसाब पीछ्ली बहस का तो नई बहस औचीत्य हीन होगी , हो अगर फीर भी बहस तो  बहसो के हीसाब पर  फीर एक बहस जरुरी हो .......................पर हो बहस जरुर हो