मै आज भी उस दीन को याद करता हु जब एक व्यक्ती ने आ के बताया की बीरजु गुजर गया , उस समय मुझे एसा लगा जैसे इस दुनीया मे कई लोग पैदा हुए और फीर मर गये उसी तरह बीरजु भी आज हमारे बीच से चला गया ।लेकीन शायद मेरे लीये बीरजु दुसरो से सीर्फ इस लीये अलग था क्यो की वो मेरे पीता जी की कम्पनी मे हमारे लकडी डीपो मे चौकीदार था और इस नाते वो हमारा बहुत अधीक ख्याल रखता था । लेकीन बीरजु मेरे लीये कुछ खास मायने रखता था, और वो शायाद इस लीये की उस्ने मेरे पीता के साथ साथ मेरे दादा जी के जीवन के तमाम उतार चडाव को न केवल देखा था बलकी महसुस मी कीया था । लेकीन वो हमारे पीढी दर पीढी के सघर्ष मे साथ राहा । लेकीन हमारे परीवार के अच्छे समय का जो लाभ उस्को मीलना चाहीये था शायद वो मेरा परीवार उसको दे पाने मे असफल राहा जबकी कही भी कभी भी बीरजु की निष्ठा न तो डगमागाई और न ही संधीग्ध हुई , और वो पुरी शीद्द्त से हमारे परीवार और पीताजी की मैहनत और सफलता के कीस्से सुनाता था । उस्के ब्यान से एसा लगता था की जैसे हमारी आखो के सामने कोई चलचीत्र चल राहा हो जो मुझे बहुत प्रभावीत करता था ।
ये सब चल ही राहा था की पीता जी और उनके भाइयो के बीच व्यपार का बट्वारा हो गया और पीता जी के हीस्से के सारे व्यपार की कमान मेरे हाथ मे आ गई और पीता जी के मार्गदर्शन मे मुझे व्यपार के साथ साथ कम्पनी के सारे पुराने मुलाजीम मुझे मीले जो की पीता जी ने बट्वारे मे वीशेष प्रवधान कर मेरे हीस्से मे शामील कर दीये और मुझे आदेश दीया की इन सब की जिम्मेदारी आज से तुम्हारे उपर है । पीती जी के उस आदेश से मुझे ये समझ आया की पीता जी अपने पुराने और निष्ठावान् मुलाजीमो को अपने साथ रख कर उनके लीये कुछ करना चहाते है । यह एक और वझह बनी की बीरजु मेरे दील के करीब आ गया पर पीता जी इस सुख और मन पसन्द आदमीयो के साथ जयादा समय नही रह पाये और 9-10-1993 को हम सब को छोड कर इस दुनीया से चले गये ।
अब बीरजु के बारे मे जान लेना बहुत जरुरी है । मैने बीरजु को 1972 मे पहली बार अपने पीता जी की कम्पनी के मुलाजीम के तौर देखा था , बीरजु 10 लड्को और 1 लडकी के पीता थे उन्हो ने अपनी जिन्दगी मे अपने बच्चो के लीये बहुत कुछ नही कर पाये और लगभग सभी लडको को ट्रक ड्रायव्हर ही बना पाये थे । लेकीन सब के सब बीरजु को छोड कर अपने अपने परीवार को ले कर अपने राहा चल दीये और छोड दीया बुजुर्ग मां और बाप को ।
जैसे ही बच्चो ने साथ छोडा भगवान ने भी उसकी मदद करने से मानो मना कर दीया और बीरजु की आखे लगभग जवाब दे गई और हद तो तब हो गई उम्र की संध्यां मे बीरजु की धर्मपत्नी ने साथ छोड दीया बीरजु कुछ सम्हल पाता भगवान ने जैसे उसके जीवन मे कैहर बरपाना शुरु कर दीया हो , जैसे उस्के जिवन मे सुनामी आया और उसकी बची खुची जिन्द्गी को नशे ने एसा ग्रहण लगया की 2-3 सालो मे उस्के 10 मे से 7 लडके और अलग अलग दुर्घट्नाओ मे तथा 2 लड्के अधीक नशे के कारण भगवान को प्यारे हो गये है , और शेष 1 लडका हुआ नही हुआ के बराबर हो चुका था । अब मुझे मेरे पीता की कही हुई वो बाते, की अब इन सब मुलाजीमो की जिम्मेदारी तुम्हारी है, जैसे चरीतार्थ होती नजर आ रही थी । और इसके बाद पीता जी के आदेश के मुताबीक और बीरजु से मेरे वीशेष लगाव के कारण और अब तो बेसाहारा बीरजु की जीतनी सेवा की जा सकती थी वो मैने की और समय गुजरने लगा .................. और आखीर वो दीन 9-12-2002 को आया जब
कीस्मत का मारा, नशे का लताडा , समय का तगाया "बीरजु" हम सब को छोड चला गया और मेरी आखो मे उस समय आसु उमड पडे थे जब बीरजु की मौत की सुचना मीलने पर मै उस्के घर पहुचा तो उस्की बेटी ने बताया की भैय्या आप को पता है बाबु [ बीरजु ] के आखरी इच्छा क्या थी , तो मैने पुछा बताओ क्या थी उस्की आखरी इच्छा तो उस्ने बताया की बाबु ने बोला है की उनकी चीता को आग[ मुखाग्नी] नीलु बाबु [ मेरा घर का नाम है ] ही देगे ।
बीरजु के घर से लेकर शमशान भुमी तक का रास्ता कैसे क़टा मुझे कुछ भी मालुम नही और शमशान भुमी मे हम 60 मीनीट रहै और उस दोरान मेरे दीमाग और आखो के सामने 1972 जब मैने बीरजु को पहली बार देखा था और 9-12-2002 का ये दीन जब से मै बीरजु को कभी नही देख पाउगा तक का पुरा वाक्या देखाई दे राहा था ..................... और चीता को मुखाग्नी देते वक्त मेरे आखो से आसुओ की धारा और तेज हो गई ...................... मै कभी नही भुला सकता वो 60 मीनीट जो बीरजु के बहुत करीब थे ।
ये सब चल ही राहा था की पीता जी और उनके भाइयो के बीच व्यपार का बट्वारा हो गया और पीता जी के हीस्से के सारे व्यपार की कमान मेरे हाथ मे आ गई और पीता जी के मार्गदर्शन मे मुझे व्यपार के साथ साथ कम्पनी के सारे पुराने मुलाजीम मुझे मीले जो की पीता जी ने बट्वारे मे वीशेष प्रवधान कर मेरे हीस्से मे शामील कर दीये और मुझे आदेश दीया की इन सब की जिम्मेदारी आज से तुम्हारे उपर है । पीती जी के उस आदेश से मुझे ये समझ आया की पीता जी अपने पुराने और निष्ठावान् मुलाजीमो को अपने साथ रख कर उनके लीये कुछ करना चहाते है । यह एक और वझह बनी की बीरजु मेरे दील के करीब आ गया पर पीता जी इस सुख और मन पसन्द आदमीयो के साथ जयादा समय नही रह पाये और 9-10-1993 को हम सब को छोड कर इस दुनीया से चले गये ।
अब बीरजु के बारे मे जान लेना बहुत जरुरी है । मैने बीरजु को 1972 मे पहली बार अपने पीता जी की कम्पनी के मुलाजीम के तौर देखा था , बीरजु 10 लड्को और 1 लडकी के पीता थे उन्हो ने अपनी जिन्दगी मे अपने बच्चो के लीये बहुत कुछ नही कर पाये और लगभग सभी लडको को ट्रक ड्रायव्हर ही बना पाये थे । लेकीन सब के सब बीरजु को छोड कर अपने अपने परीवार को ले कर अपने राहा चल दीये और छोड दीया बुजुर्ग मां और बाप को ।
जैसे ही बच्चो ने साथ छोडा भगवान ने भी उसकी मदद करने से मानो मना कर दीया और बीरजु की आखे लगभग जवाब दे गई और हद तो तब हो गई उम्र की संध्यां मे बीरजु की धर्मपत्नी ने साथ छोड दीया बीरजु कुछ सम्हल पाता भगवान ने जैसे उसके जीवन मे कैहर बरपाना शुरु कर दीया हो , जैसे उस्के जिवन मे सुनामी आया और उसकी बची खुची जिन्द्गी को नशे ने एसा ग्रहण लगया की 2-3 सालो मे उस्के 10 मे से 7 लडके और अलग अलग दुर्घट्नाओ मे तथा 2 लड्के अधीक नशे के कारण भगवान को प्यारे हो गये है , और शेष 1 लडका हुआ नही हुआ के बराबर हो चुका था । अब मुझे मेरे पीता की कही हुई वो बाते, की अब इन सब मुलाजीमो की जिम्मेदारी तुम्हारी है, जैसे चरीतार्थ होती नजर आ रही थी । और इसके बाद पीता जी के आदेश के मुताबीक और बीरजु से मेरे वीशेष लगाव के कारण और अब तो बेसाहारा बीरजु की जीतनी सेवा की जा सकती थी वो मैने की और समय गुजरने लगा .................. और आखीर वो दीन 9-12-2002 को आया जब
कीस्मत का मारा, नशे का लताडा , समय का तगाया "बीरजु" हम सब को छोड चला गया और मेरी आखो मे उस समय आसु उमड पडे थे जब बीरजु की मौत की सुचना मीलने पर मै उस्के घर पहुचा तो उस्की बेटी ने बताया की भैय्या आप को पता है बाबु [ बीरजु ] के आखरी इच्छा क्या थी , तो मैने पुछा बताओ क्या थी उस्की आखरी इच्छा तो उस्ने बताया की बाबु ने बोला है की उनकी चीता को आग[ मुखाग्नी] नीलु बाबु [ मेरा घर का नाम है ] ही देगे ।
बीरजु के घर से लेकर शमशान भुमी तक का रास्ता कैसे क़टा मुझे कुछ भी मालुम नही और शमशान भुमी मे हम 60 मीनीट रहै और उस दोरान मेरे दीमाग और आखो के सामने 1972 जब मैने बीरजु को पहली बार देखा था और 9-12-2002 का ये दीन जब से मै बीरजु को कभी नही देख पाउगा तक का पुरा वाक्या देखाई दे राहा था ..................... और चीता को मुखाग्नी देते वक्त मेरे आखो से आसुओ की धारा और तेज हो गई ...................... मै कभी नही भुला सकता वो 60 मीनीट जो बीरजु के बहुत करीब थे ।
सच बिरजू आपके लिये किसी धरोहर से कम नहीं था....वो आपकी तीन पीढ़ियों के साथ कर्म के बंधन से बंधा हुआ था और उसने जाते-जाते अपनी चिता को मुखांग्नि देने का अधिकार आपको दे कर अपनी संपूर्ण वफादारी आपके नाम पर कर दी....ईश्वर बिरजू की आत्मा को शांति प्रदान करे.....
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