Friday 11 May 2012

मेरे घर ना आना भगत ................................

आज मेरा ख्याल   अचानक समाचार पत्रो और समाचार चैंनलो  पर जा कर ठहर गया और फीर मेरे अंदर एक मंथन रुपी दवध्ध चलने लगा । आज़ देश मे हर चोथा आदमी दुसरे को चोर, भ्रष्टाचारी, अत्याचारी और लुटेरा साबीत करने मे लगा हुआ है  । और एसा करने मे वो अप्ना दाईत्व, जिम्मेदारी, और वो सब भुला बैठ्ता है जो एक मर्यादा के रुप मे हमे कानुन से बान्धती है । चोरी, भ्रष्टाचार, अत्याचार और लुट के वीरोध मे जित्ने लोग दुसरे लोगो को जगाने मे लगे है वो खुद इस सब के खीलाफ क्मरकस के लग जाये तो ये सब अप्ने आप ही समाप्त हो सक्ता है । जब तक दुसरो को जगाने की बात है तो लोग बड चड के हीस्सा लेते है पर जैसे ही खुद की बारी खुद के घर से क्रांती शुरु कर्ने की आती है तो लोग बगले झाकते नजर आते है । अर्थात कीसी क्रांती मे कुर्बानी देने हेतु लोग यही इरादा रखते है की कुर्बानी देने वाला भगत, सुखदेव, राजगुरु उनके आगन मे पैदा ना हो पडोसी के घर ही कुर्बानी की जीम्मेदारी हो ?

2 comments:

  1. इसी सोच को बदलनी होगी। जब तक हम यह ताकते रहेंगे कि बदलाव के लिए कोई और कोशिश करे, बदलाव आने वाला नहीं है।

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  2. sir ji bahut hi sahi bat hai
    hame is soch ko badlana bahut jaruri hai

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