Tuesday, 28 August 2012

शमशान के वो 60 मीनीट

मै आज भी उस दीन को याद करता  हु जब एक व्यक्ती ने आ के  बताया की बीरजु गुजर गया , उस समय मुझे एसा लगा जैसे इस दुनीया मे कई लोग पैदा हुए  और फीर मर गये उसी तरह बीरजु भी आज हमारे बीच से चला गया ।लेकीन शायद मेरे लीये बीरजु दुसरो से सीर्फ इस लीये अलग था क्यो की वो मेरे पीता जी की कम्पनी मे हमारे लकडी डीपो मे चौकीदार था और इस नाते वो हमारा बहुत अधीक ख्याल रखता था । लेकीन बीरजु मेरे लीये कुछ खास मायने रखता था, और वो शायाद इस लीये की उस्ने मेरे पीता के साथ साथ मेरे दादा जी के जीवन के तमाम उतार चडाव को न केवल देखा था बलकी महसुस मी कीया था । लेकीन वो हमारे पीढी दर पीढी के सघर्ष मे साथ  राहा । लेकीन हमारे परीवार के अच्छे समय का जो लाभ उस्को मीलना चाहीये था  शायद वो मेरा परीवार उसको दे पाने मे असफल राहा जबकी कही भी कभी भी बीरजु की निष्ठा न तो डगमागाई और न ही संधीग्ध हुई , और वो पुरी शीद्द्त से हमारे परीवार और पीताजी की मैहनत और सफलता के कीस्से सुनाता था । उस्के ब्यान से एसा लगता था की जैसे हमारी आखो के सामने कोई चलचीत्र चल राहा हो जो मुझे बहुत प्रभावीत करता था ।
                               ये सब चल ही राहा था की पीता जी और उनके भाइयो के बीच व्यपार का बट्वारा हो गया और पीता जी के हीस्से के सारे व्यपार की कमान मेरे हाथ मे आ गई और पीता जी के मार्गदर्शन मे मुझे व्यपार के साथ साथ कम्पनी के सारे पुराने मुलाजीम मुझे मीले जो की पीता जी ने बट्वारे मे वीशेष प्रवधान कर मेरे हीस्से मे शामील कर दीये और मुझे आदेश दीया की इन सब की जिम्मेदारी आज से तुम्हारे उपर है । पीती जी के उस आदेश से मुझे ये समझ आया की पीता जी अपने पुराने और निष्ठावान् मुलाजीमो को अपने साथ रख कर उनके लीये कुछ करना चहाते है । यह एक और वझह बनी की  बीरजु मेरे दील के करीब आ गया पर  पीता जी  इस सुख और मन पसन्द आदमीयो के साथ जयादा  समय नही रह पाये और 9-10-1993 को हम सब को छोड कर इस दुनीया से चले गये ।
                              अब बीरजु के बारे मे जान लेना बहुत जरुरी है । मैने बीरजु को 1972 मे पहली बार अपने पीता जी की कम्पनी के मुलाजीम के तौर देखा था , बीरजु 10 लड्को और 1 लडकी के पीता थे उन्हो ने अपनी जिन्दगी मे अपने बच्चो के लीये बहुत कुछ  नही कर पाये और लगभग सभी लडको को ट्रक ड्रायव्हर ही बना पाये थे । लेकीन सब के सब बीरजु को छोड कर अपने अपने परीवार को ले कर अपने  राहा चल दीये और छोड दीया बुजुर्ग मां और बाप को ।
                                जैसे ही बच्चो ने साथ छोडा भगवान ने भी उसकी मदद करने से मानो मना कर दीया और  बीरजु की आखे लगभग जवाब दे गई और हद तो तब हो गई उम्र की संध्यां मे बीरजु की धर्मपत्नी ने साथ छोड दीया बीरजु कुछ सम्हल पाता भगवान ने जैसे उसके जीवन मे कैहर बरपाना शुरु कर दीया हो , जैसे उस्के जिवन मे सुनामी आया और उसकी बची खुची जिन्द्गी को नशे ने एसा ग्रहण लगया की 2-3 सालो मे उस्के 10 मे से 7 लडके और अलग अलग दुर्घट्नाओ मे तथा 2 लड्के अधीक नशे के कारण भगवान को प्यारे हो गये है , और शेष 1 लडका हुआ नही हुआ के बराबर हो चुका था । अब मुझे मेरे पीता की कही हुई वो बाते, की अब इन सब मुलाजीमो की जिम्मेदारी तुम्हारी है, जैसे चरीतार्थ होती नजर आ रही थी । और इसके बाद पीता जी के आदेश के मुताबीक और बीरजु से मेरे वीशेष लगाव के कारण और अब तो बेसाहारा बीरजु की जीतनी सेवा की जा सकती थी वो मैने की और समय गुजरने लगा .................. और आखीर वो दीन 9-12-2002 को आया जब
कीस्मत का मारा, नशे का लताडा , समय का तगाया "बीरजु" हम सब को छोड चला गया और मेरी आखो मे उस समय आसु उमड पडे थे जब बीरजु की मौत की सुचना मीलने पर मै  उस्के घर पहुचा तो उस्की बेटी ने बताया की भैय्या आप को पता है बाबु [ बीरजु ]  के आखरी इच्छा क्या थी , तो मैने पुछा बताओ क्या थी उस्की आखरी इच्छा तो उस्ने बताया की बाबु ने बोला है की उनकी चीता को आग[ मुखाग्नी] नीलु बाबु [ मेरा घर का नाम है ] ही देगे ।
                                        बीरजु के  घर से लेकर शमशान भुमी तक का रास्ता कैसे क़टा मुझे कुछ भी मालुम नही और शमशान भुमी मे हम 60 मीनीट रहै और उस दोरान मेरे दीमाग और आखो के सामने 1972 जब मैने बीरजु को पहली बार देखा था और 9-12-2002 का ये दीन जब से मै बीरजु को कभी नही देख पाउगा तक का पुरा वाक्या देखाई दे राहा था ..................... और चीता को मुखाग्नी देते वक्त मेरे आखो से आसुओ की धारा और तेज हो गई ...................... मै कभी नही भुला सकता वो 60 मीनीट जो बीरजु के बहुत करीब थे ।

Wednesday, 15 August 2012

गरीब का हक

गरीब के हक का कोई सामान अगर कोई ले कर भाग जाये तो हम उसे दौड कर पकड्ने का प्रयास करते है । लेकीन गरीब का मीट्टी तेल ,अनाज , घर , बीजली, और उस्के हक का काम कुछ लोग थोडा सा लालच दे कर खरीद रहे है और गरीब के लीये सरकार दवारा गरीब को इन चीजो पर दी जा रही सब्सीडी को व्यपारीयो के हाथो बेच कर गरीबो के हक को अपने नीजी फायेदे मे बदल कर न केवल गरीब की मजबुरी से अपना लाभ अर्जीत कर रहै है        बलकी गरीबो के जीवेन स्तर सुधारने के लीये सरकारो के दवारा कीये जा रहै सार्थक प्रयास को भी अवरुध करने मे लगे हुये है ।
                                            अब तो ये दो कदम और आगे बड कर गरीबो को ढाल बना कर गरीबो के लीये स्वास्थ पर मीलने  वाली सरकार की और से नगद राशी को नीजी हास्पीटल से साठ गाठ कर खाने मे लगे हुए है ।
 सरकार वीधान सभाओ, और देश की संसद मे आकडे दे कर खुश है की हमने फला फला योजना के माध्यम से  इतने हजार लोगों को लाभ पहुचा कर उनका जिवन स्थर उपर उठाया है । जब्की धरातल मे बील कुल इसके वीपरीत  होता है ।और सरकार अप्रत्यक्ष रुप से उन लोगों का जिवन स्थर उपर उठाने का काम कर देती है जो उसके लीये पात्र नही थे और जो पात्र थे वो अपने आप को ठगे से महसुस कर रहै है ।

Monday, 25 June 2012

मेरा शहर रंगीला है....तेरे ख़्वाब आसमानी हैं....तेरी सोच आला है...पर मेरी चाहत नारंगी है.......


आज घर से निकलते ही दो कदम चलते ही नजर आया माननीय मुख्यमंत्री का निवास। वहां की गतिविधियां देख कर अनायास ही मेरी गाड़ी वहां रुक गई और मै वहां की सरगर्मी का जायजा लेने लगा।  पता लगा की कल हमारे मुख्यमंत्री जी शहर को फिर एक सौगात देने हेतु पधार रहे हैं। जब-जब हमारे मुख्यमंत्री जी कुछ देने आते हैं तो उनके द्वारा दी गई अनेक सौगातों की याद एक चलचित्र की भांति आखों के सामने घूमने लग जाती है। आज भी यही स्थिति मेरी आखों के सामने बन रही है। तो आओ, हम विचारें कि हमारे विधायक और प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा हमारे जिले के मुखिया ने अपने शहर पर क्या क्या कृपा की है । 
सबसे पहले हम बात करें गौरवपथ की जो दिखाई तो देता है की वो पूर्ण हो चुका है पर कही न कही पूर्ण होने की प्यास और भूख उसमे दिखाई देती है। ये अलग बात है कि उसको पूर्ण कराने और करने मे प्रशासन को एड़ी चोटी का जोर तो बकायदा यहां से ही ठेकेदारी की शुरूवात की है। 
 वहां से निकल जब हम शहर के फोरलेन पर पहुंचे तो मुझे लगा कि जो नेता छोटे छोटे निर्माण का श्रेय लेने के लिये आपस में होड़ लगा लेते हैं वो नेता इस फोरलेन के निर्माण का श्रेय लेने मे डर क्यो रहे हैं। तब यह एहसास हुआ कि ये निर्माण श्रेय लेने लायक नही है। जो व्यक्ति या नेता इस निर्माण का श्रेय  लेने की कोशिश करेगा वो यहां की जनता की आखों की किरकिरी बन जायेगा। यही वजह है कि न तो इस इस बेतुके ए बेढंगे, बिना कारण के गलत बने फ्लाई का उद्घाटन हुआ और ना तो इसके निर्माण का राजनीतिक लाभ  किसी  नेता ने लेने की कोशिश की । यहां ये बात  गौर करने वाली है कि इस शहर को इस फोरलेन  ने शहर की परम्परा, मर्यादा, व्यापार और परिवारों को भी प्रभावित किया है । यही वजह है कि शहर का कोई भी नागरिक इस फ्लाईओवर को जायज नही ठहरा सकता। 

 फ्लाईओवर से नीचे उतर कर हमारा ध्यान अब बूढ़ासागर पर आ गया। ये वही बूढ़ा सागर है जिसकी सुन्दरता को ले कर एक महती योजना स्थानीय प्रशासन ने जन सहयोग से चलाई  और वहां पर मशीनों के माध्यम से काम शुरु कर रोज शहर के समाजसेवियों और स्थानीय अधिकारियों  ने मिल कर एस महती योजना का ढिंडोरा पीटा था। निश्चित ही यह योजना लोगों के लिये एक मिसाल होती  बशर्ते ये अब तक पूरी हो चुकी होती । 

यहां पर नई गंज मंडी की चर्चा न करना बेमानी होगा, क्योंकि माननीय मुख्यमंत्री जी ने कई  सौगाते वहां भी हमको दी है। वो सब्जी बाजार जो कभी आबाद नही हुआ, वो माल जो कभी भी किसानो को लाभ नही दे पाया और अब तो सुनाई आ रहा है कि उस माल को एक शहर के व्यापारी को लीज पर दे दिया गया है और ये भी सुनने को मिल रहा है कि इस व्यापारी को देने के लिये उसके निर्वर्तन प्रक्रिया  मे से कई शर्ते शीथिल कर अनुचित लाभ से नवाजा गया है । 
 पुराना गंज मंडी चौक में बन रहा शापिंग काम्पलेक्स, रेल्वे  स्टेशन के पास बन रहा शापिंग काम्पलेक्स  जहां पूरा होने की बाट जोह रहा है वहीं ट्रांसपोर्ट नगर अपनी दास्तां पर आसूं बहा रहा है  क्यों नही ये सारी चीजो को पूरा कर जनता को व्यापार हेतु उपलब्ध कराये तो माननीय मुख्यमंत्री की सौगातो को प्रशंसा मिल सके।

     यहां हम नगर में बनी चौपाटी पर बात कर लेना लाजिमी मानते हैं । चौपाटी को बनाते वक्त ये नहीं सोचा गया कि यहां की दीवारों पर लगी जालियां नगर के चोरों का पेट भरेगी और वहां पर नगर के सारे आशिक अपने दिल की बात अपनी महबूबा से कहने के लिये इक_ा होंगे और बच्चो के लिये चलाई गई टायट्रेन में बैठ कर कोई प्यार के गीत गायेंगे पर अफसोस यहां पर न तो आशिकों की मुराद पूरी हो सकती है और न ही बच्चों की छुक-छुक मे चढऩे की ख्वाहिश क्योंकि कई महीनो से टायट्रेन बंद पड़ी है। 

चौपाटी पर खड़े-खड़े नजर पड़ी क्रेडा के उर्जा पार्क पर जहां माननीय मुख्यमंत्री महोदय ने हमको एक संगीतमय फौव्वारा सौगात में दिया था जो संगीत की धुनों पर पानी की बौछारें बिखेरता था। बड़े अफसोस की बात है कि पिछले कई दिनों से ये नजारा भी नगरवासी देख नही पा रहे हैं। 
नगर में एक स्थान पर राजनादगांव की तीन विभूतियों के नाम से त्रिवेणी परिसर बनाया गया जहां पर प. बलदेव प्रसाद मिश्र,गजानन माधव मुक्तिबोध, डा पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी की प्रतिमाएं लगा कर उस स्थान को सजाने का काम तत्कालीन जिलाधीश गणेश शंकर मिश्रा ने किया था पर ये स्थान भी आज वीरान और उपेक्षित दिखाई देता है जबकि यहां से लोगों की भावनाये जुडी हुई हैं। 
इन्हीं सब पर विचार करते-करते हम भदौरिया चौक पर आ गये और बातों-बातों में हमें तिरीथराम मंडावी मिला, जिसके आग्रह पर मै बसंतपुर,नंदई, लखोली, मठपारा होता हुआ चिखली पहुंचा जहा पर मुझे ये सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि जब बरसात के पहले इन सड़कों  को अगर बनाना नहीं था तो क्यों लोगों के घरो, दुकानों, और छोटे-छोटे आशियानों को विकास के नाम पर तोड़ा गया।
  मै अभी शहर की सड़कों पर बात कर ही रहा था कि मेरे पीछे से आवाज आई, भाई साहब अभी तो आप ने बायपास पर कोई बात नही की है?क्या आप को बाईपास का औचित्य नजर आता है? मैने ये बात जब सुनी तो मेरे अन्तरमन ने मेरे से एक सवाल किया कि  बेढंगा बायपास को उस मुहावरे के साथ मै पूर्ण करुंगा जीसमे कहा गया कि जख्मों पे नमक छिड़कना...फ्लाईओवर के बाद बायपास बिलकुल वैसा ही है।   

जिला अस्पताल की सुरताल अब जा कर ठीक हुई है। स्टडियम कमेटी का हाल किसी से छुपा नही है... हमारी  पुलिस तो माशाअल्ला उसको कुछ कहने में डर सा लगता है।
और क्या लिखूं...राजनीति... नही भाई...नहीं ...मेरी तौबा!
बरबाद गुलिस्तां करने में एक ही उल्लू काफी है...

Monday, 4 June 2012

हा बहस होनी चाहीये पर पीछ्ली बहस का क्या ?

 होनी चाहीये बहस जरुर हा जरुर होनी चाहीये बहस एक कीसान पर , कीसान की मौत पर , सीमा पर सीपाही की  हालत पर , आतंकवाद से लडते मरते सीपाही पर , हा संसद मे  लड्ते नेताओ  की सोच पर , दल और गुटो मे बटे नेताओ  पर , कीसी क्रीकेट खीलाडी के पाव की मोच पर , रीश्वत लेते अधीकारी पर , काम से जी चुराते कर्मचारी पर , व्यपार मे मरते व्यपारी पर बहस होनी ही चाहीये ।लींग आनुपात मे बडती खाई पर , कोख मे मरती माई पर   बलातकारी भाई पर , राजनीती की डाई पर बहस होनी ही चाहीये । पाकीस्तान और अपने रीश्ते पर , दोनो देशो के नक्शे पर ,चीन की गुंडागर्दी पर , सेना की वर्दी पर होनी ही चाहीये बहस। मा की ममता पर , समाजो की क्षमता पर , ममता के गुस्से पर  बहस होनी ही चाहीये । प्यासे मरते खेतो पर , हस्पतालो मे मरते बच्चो पर , बड्ता वजन बस्तो पर  बहस का वीषय ही है । गीरते उत्पादन पर रुपये की हालत पर , साधु संतो की  राजनीती पर , अन्ना ह्जारे , और बाबा की हालत पर उनके आन्दोलन पर बहस जरुरी है । सी.बी. आई की स्वत्ंत्रता पर ,देश की अख्णता पर , जाती वादी जनसख्या की गणना पर बहस आवश्यक  है । जरुरी है हर बहस बहुत जरुरी है भाई पर हो आगे कोई नई  बहस उस्के पहले पीछ्ली बहस क हीसाब होना चाहीये ............. नही है कोई हीसाब पीछ्ली बहस का तो नई बहस औचीत्य हीन होगी , हो अगर फीर भी बहस तो  बहसो के हीसाब पर  फीर एक बहस जरुरी हो .......................पर हो बहस जरुर हो 

Thursday, 31 May 2012

मुझे गरीब ना कह्ना ............ मै गरीब नही .......... पर सभी सुविधा चाहीये

देश और राज्य सरकारे  रोज नई योजनाओ के माधय्म से गरीबो का जीवन स्तर उठाने के लिये  अपना अथक प्रयास कर रही है । और उस योजनाओ से लाभ लेते लोग भी दीखाई देते है । पर जो लोग लाभ उठा रहे है उनमे से अधीकतर लोग न तो  गरीब दीखाई देते है और न ही वो गरीब है । मुझे तो एसा लग राहा है की इन योजनाओ के माध्याम  से सरकार अपने वोट खरीद कर राजनीतीक  स्वार्थ सीध्धी कर रही है ।                                                                           मुझे आज घर से काहा गया की घर मे कुछ काम है एक मजदुर चाहीये , पर सारा दीन डुड्ने के बाद एक एसे आदमी से मुलाकात हुई जो मनरेगा के तह्त 100 दीन का रोज़गार गारान्टी पुरा कर चुका था । मैने उसे अपने घर पर मजदुर की आवश्यकता बताई तो उस वयक्ती ने  बताया की मै सीर्फ 4 घंटे काम करुगा और 200 रुपये लुगा । मैने उस्से काहा की ये तो आठ घंटे के लीये भी जादा है । वो बोला साहाब आप को पता नही हम गरीब है, और ह्मारा कार्ड भी है । सरकार हमको 2 घंटे काम करने पर 140 रुपये देती है । और उन दो घंटे मे हम काम करें या ना करें कोई हमको बोलने टोकने की हीम्म्त नही कर पाता कुओ की ह्मारे पास गरीबी रेखा के नीचे वाला कार्ड है । और 5000 ह्जार तो हमको वो कार्ड बनवाने के लीये खर्च करने पडे है । इस लीये साहाब हम 4 घ्ंटे का 200 रुपये से कम नही लुगा ।                                   मुझे ये एह्सास होने लगा की इस गरीब से काम करवाने की हीम्मत मुझ गरीब मे तो नही । और मुझे ये भी समझते देर नही लगी की वीकास दर क्यो गीर रही है । और ये भी की उत्पादन क्यो और कैसे गीर राहा है । यानी जो गरीब है वो योजनाओ का लाभ नही ले पा रहे है । और जो गरीब नही है वो सारी योजनाओ का आनन्द तो ले ही रहै है । बलकी गरीबो के काम के अवसरो को भी हथीया लीया है ................................... ईसी प्रकार गरीबो के हक को चालाक और धुर्त लोग खा तो रहै है साथ ही अपने आप को गरीब कहलाने मे भी शर्म मह्सुस होती है । कई गरीब तो एसे भी है जो कीसी दुसरे नाम से भी गरीब बने हुए है एसा करने के लीये गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले गरीब परीवार के कई कार्डो मे से कुछ को बाकायदा खरीद लीया है ये भी एक व्यपार है । और जो व्यपार कर राहा हो वो गरीब कैसे हो सकता है ।

Wednesday, 23 May 2012

ये पब्लीक् है सब जांति है ?

ये पब्लीक है सब जानती है , अजी अन्दर क्या है बाहार क्या है , ये सब पह्चानती है । क्या वास्तव मे एसा है , या क्या वास्तव मे पब्लीक एसा मानती है ? ये लाइने बेशक कीसी फील्मी गीत की हो  सक्ती है पर क्या आज देश के जो हालात है । उसमे ये कह्ना बेमानी नही होगा ?  की देश की जनता सब जानती है । अगर पब्लीक सब जांती होती की कोन सा नेता कैसा है , भ्रष्ट है , चोर है , कातील है , बलात कारी है , या पापी, और लुटेरा है तो क्या पब्लीक इन सब को चुन कर विधान सभाओ, और लोक सभा, राज्य सभा मे भेजने की गलती थोडे करती , और अगर ये काहा जाये की ये सब जांते हुए भी जनता ने इन सब को चुन कर भेजा है तो मै यही कहुगा की जनता न केवल  प्रजातंत्र के प्रती उदासीन है बल्की देश के कानुन से जादा लोग इस टाईप के नेताओ पर जादा वीश्वास करते है जो जुल्म से जुडे है लेकीन आम आदमी इनकी बात मानता है । चाहे वो उस्के डर से ही एसा करते हो । याहां ये बात साबीत होती है की भय बिन प्रीत न होय गोपाला । 100 बात की एक बात देश का आम नागरीक चाहे वो डर से हो या जिवन यापन के चक्कर मे अनुशासन हीन हो चला है । इन सब को कानुन के भय से ही ठीक कीया जा सक्ता है ? जो राहा ही नही है । इन्ही सब के कारण आम आदमी कानुन के पास जाने के बजाये एसे भ्रष्ट  लोगो के पास जा कर अप्नी त्तकालीक पुर्ती और स्वार्थ सीद्धी कर लेते है । मै इन्ही माय्नो मे फील्मी गीत की वो पग्तीया गाता हु जिस्मे काहा गया है की ये पब्लीक है सब जांती है ............. की काहा उस्का लाभ है । इस बात को समझे की भ्रषट्राचार , लुट , चोरी, बलात्कार , हत्या जैसे जुर्म का समाधान अपने वोट से ही करना और हम्को मतदान आवश्यक कानुन और राजनीतीक पार्टीयो के घोषना पत्रो पर उपभोक्ता कानुन मे लाना होगा तभी सही मायने मे आम आदमी जागे गा और गाये गा की ये जो पब्लीक है सब जांती है ................. ?

Saturday, 19 May 2012

और दुसरो न कोई .............

जब जब देश  को कुर्बानी  देने की बात आती है तो ह्मारे नेताओ दवारा  अप्ने अलावा एसे लोगो की तारीफ शुरु कर देते है जीनका कुर्बानीयो से कीसी न कीसी तराहा का सरोकार राहा है । और वो सीर्फ इस लीये ताकी कुर्बानी देने के लीये जनता कही उनका चुनाव ना कर ले । जब्की ये बात सही है की देश की सीमा पर और देश के अन्दर देश के दुशमनो से लड रहे सीपाहीयो द्वारा अप्नी जान कुर्बानी के प्रस्तुत कर चुकने के वक्त भी नेता केवल अप्नी कुर्सी कायम रख्ने का दांव पेच खेल राहा होता है ।याहा यह गॉर करने वाली बात है की देश का सिपाही चाहे वो देश के अन्दुरुनी हीस्से मे हो चाहे वो सीमाऔ पर हो , चाहे वो अपने परीवार के लीए अभाव को दुर न कर पाराहा हो पर देश और देश वासीयो की रक्षा  मे अपने प्राणो को खर्च  करने मे कभी देर नही करता और कंजुसी भी नही । हम सब को देश के सीपाहीयो के इस  बलीदानी  जज्बो को न केवल सलाम करना चाहीये बल्की समाज मे उन्को समय समय पर सम्मान भी देते रह्ना होगा यही एक सीपाही की पुजीं हो सक्ती है जीस्से प्रभावीत हो कर सीपाही कह्ने मे हीच्के गा नही की देश के सीवाये मेरा दुसरो न कोइ  ।